Mutual Fund or PPF: समझें 3 फ़ैक्टर्स और Eye Catching विश्लेषण से, किसमें निवेश करने पर मिलेगा बंपर रिटर्न..

Mutual Fund or PPF किसमें मिल सकता है बंपर रिटर्न: क्या आप सभी लोग जानना चाहते हैं कि हमें अपने पैसे को म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करना चाहिए या PPF में, यदि नहीं, तो आइए समझते हैं:

कोरोना काल खत्म होने के बाद जिस तरह से म्युचुअल फंड ने रिटर्न जनरेट किया है सभी लोग अचंभित हैं। लोगों के मन में एक सवाल उठ गया है Mutual Fund or PPF? लोग सोचना शुरू कर दिए हैं कि उन्हें अब म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करना चाहिए या उसी कंजरवेटिव सोच के साथ PPF में ही इन्वेस्ट करते रहना चाहिए।

सबसे पहले, हम यह जानते हैं कि हम कौन से म्यूचुअल फंड की बात कर रहे हैं। तो आपको बता देते हैं की हम यहाँ पर ईएलएसएस (ELSS- Equity Linked Saving Scheme) या टैक्स सेविंग स्कीम वाले म्यूचुअल फंड की बात करने जा रहे हैं। जिसमे हमे इनकम टैक्स के सेक्शन 80C के तहत 1.50 लाख टैक्स सेव करने का मौका मिलता है। क्योंकि PPF भी एक प्रकार का टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट स्कीम ही है।

Mutual Fund or PPF

Mutual Fund or PPF (Image source: Canva)

मार्केट इन्वेस्टमेंट फैक्टर्स

हमें इन दोनों (Mutual Fund or PPF) में से कौनसे स्कीम में इन्वेस्ट करने पर फोकस होना चाहिए, यह जानने के लिए बहुत सारे फैक्टर को ध्यान में रखकर विश्लेषण करना होगा, जिनमें से कुछ का नीचे वर्णन किया जा रहा है:

  1. Period of investment and Liquidity: पीरियड ऑफ़ इन्वेस्टमेंट होता है कि आप कितने समय तक अपने पैसे को मार्केट में इन्वेस्टेड रखना चाहते हैं। अगर आप लंबे समय तक यानी 5 वर्ष और उससे ऊपर तक अपने पैसे को इन्वेस्टेड रखना चाहते हैं तो स्टॉक मार्केट इंडेक्स जैसे कि निफ्टी और सेंसेक्स के बीते हुए वर्षों के रिटर्न को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करना ज्यादा सही होगा। हालांकि पीपीएफ में यदि आप इन्वेस्ट करते हैं तो आपका फंड 15 वर्षों के लिए लॉक हो जाता है वहीं म्यूचुअल फंड में यदि आप इन्वेस्ट करते हैं तो आपका फंड केवल 3 वर्षों के लिये लॉक होता है। इस कारण से म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट किया हुआ पैसा ज्यादा लिक्विड होता है और PPF में इन्वेस्ट किया हुआ पैसा कम लिक्विड होता है।
  2. Risk Exposure and Return: रिस्क एक्स्पोज़र एक ऐसा फैक्टर है जो यह बताता है कि आप अपने पैसे को लेकर कितना जोखिम उठा सकते हैं। हमें यह पता होना चाहिए की म्यूचुअल फंड एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर के द्वारा मैनेज किया जाता है। प्रोफेशनल फंड मैनेजर आपके पैसे को लेकर अलग अलग कंपनियों के शेयर में इन्वेस्ट करते हैं और जरूरत पड़ने पर कंपनी चेंज भी करते रहते हैं जिससे हमारा फंड अधिक रिटर्न जेनरेट कर सके। जबकि PPF में इन्वेस्ट किए हुए हमारे पैसे को सरकार अलग अलग गवर्नमेंट एजेंसियों जैसे FCI, National Highways इत्यादि में इन्वेस्ट करती है इसके बदले में सरकार हमें एक फिक्स रेट ऑफ इंटरेस्ट (At present 7.1%) देती है और यह हर तीन-तीन महीने में रिवीजन होता रहता है।
  3. Tax on Return: म्यूचुअल फंड में मिलने वाले रिटर्न पर कैपिटल गेन टैक्स भी लगता है जबकि पीपीएफ में मिलने वाले रिटर्न पर टैक्स बिल्कुल भी नहीं लगता है परंतु म्युचुअल फंड यदि एक नॉमिनल रेट ऑफ रिटर्न भी देता है और उसके रिटर्न पर टैक्स डिडक्शन हो जाता है फिर भी म्यूचुअल फंड का रिटर्न पीपीएफ के रिटर्न के तुलना में ज्यादा होता है इसका मुख्य कारण है, कंपाउंडिंग बेनिफिट– जो कि यदि आपके रिटर्न में 1% का भी ज्यादा मुनाफा होता है तो आपके टोटल फंड वैल्यू को कई गुना ज्यादा कर देता है। चलिए इसको नीचे दिए गए टेबल के माध्यम से और ज्यादा समझते हैं। उदाहरण के लिए: यदि कोई ₹5000 प्रति महीने किसी भी स्कीम में इन्वेस्ट करता है तो देखते हैं उस इन्वेस्टमेंट के रिटर्न पर Period of investment (निवेश की अवधि) और रेट ऑफ रिटर्न का क्या प्रभाव पड़ता है ?
Estimated returns at (In Rs.)5 वर्ष (3 लाख)10 वर्ष (6 लाख)15 वर्ष (9 लाख)20 वर्ष (12.00 लाख)
7%60,0532,70,4726,94,05614,19,827
9%79,9493,74,82810,06,21921,64,480
11%1,01,2354,94,93613,94,28831,67,865
13%1,24,0176,33,40318,78,40645,27,596

ऊपर दिए गए टेबल के माध्यम से हम देख सकते हैं कि केवल 2% रेट ऑफ रिटर्न बढ़ने से हमारे एस्टीमेटेड रिटर्न में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। यदि हमारा इन्वेस्टमेंट 7% का रिटर्न जनरेट करता है तो हमारा Rs.5000 का monthly SIP(Systematic Investment Plan) Rs.60 हजार का रिटर्न जेनरेट करता है और वही इन्वेस्टमेंट यदि 11% का रिटर्न देता है तो Rs.1 लाख का रिटर्न जेनरेट करके देता है।

मार्केट परफॉर्मेंस

हमारे इन्वेस्टमेंट पर मार्केट परफॉर्मेंस का बहुत असर होता है, या तो वो हमारे investment period के दौरान हो या investment redemption के दौरान दोनों ही बहुत महत्व रखते हैं हमारे वेल्थ क्रिएट करने में। आइए इसे कुछ सवालों के माध्यम से समझते हैं।

1. लोगों के मन में एक डर होता है कि यदि मार्केट अच्छा परफॉर्म नहीं किया तो क्या हमारा इन्वेस्टमेंट रिटर्न जेनरेट करेगा?

तो इसका उत्तर है, हाँ। चलिए जानते हैं कैसे? इसे समझने के लिए नीचे दिए गए चार्ट को समझते हैं:

यहाँ हमें कॉलम 1 और कॉलम 9 से मतलब है। कॉलम 1 में period of investment मतलब holding period है जो कि 1 वर्ष से 43 वर्ष का रिकॉर्ड है और कॉलम 9 में एवरेज रेट ऑफ रिटर्न जेनरेटेड दिया गया है। इसमें देखा जा सकता है कि सेंसेक्स का रिटर्न 13% से कम कभी भी नहीं हुआ है। और हम अनुमान लगा सकते हैं कि आगे भी हमारा भारतीय बाजार ऐसे ही परफॉर्म करता रहेगा।

2. अब रही दूसरी बात कि यदि जिस समय हम अपने इन्वेस्टमेंट को रिडीम करना चाहें और उस समय कोविड 19 जैसी कोई स्थिति उत्पन्न हो जाए तो क्या करनी चाहिए?

इसका सीधा जवाब है हमें कुछ समय के लिए धैर्य रखनी चाहिए और जब तक मार्केट स्थिर नहीं हो जाता तब तक उस इन्वेस्टमेंट को वैसे ही छोड़ देनी चाहिए। कारण है कि बीते 43 वर्षों में कई बार कई ग्लोबल स्थितियां उत्पन्न हुई जिसमें मार्केट सीधा धड़ाम हुआ। जैसे कि 1992- हर्षद मेहता स्कैम, 2000– डॉट कॉम क्रैश, 2008– फाइनेंशियल क्राइसिस या 2020–कोविड 19 क्रैश इत्यादि। पर इन सभी को पार करते हुए मार्केट ने काफी डिसेंट रिटर्न दिया लोगों को।

कॉन्क्लूज़न (निष्कर्ष)

ऊपर के विश्लेषण और डेटा को देखते हुए हम यह निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यदि हम लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट यानी 5 वर्ष और उससे ज्यादा का प्लानिंग कर रहे हैं तो हमें 1 अच्छी कंपनी जिसके मैनेजमेंट में कोई दाग न हो और फंड मैनेजर एक्सपीरिएंस्ड हो, का म्युचुअल फंड सेलेक्ट करना चाहिए और उसमें लगातार SIP के रूप में इन्वेस्ट करते रहना चाहिए। हाँ, इस बीच हमें अपने इन्वेस्टमेंट को लगातार ट्रैक करते रहना चाहिए।

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